लेखनी प्रतियोगिता -25-Jan-2023दैनिक काव्य प्रतियोगिता
वो वक्त और था
कभी चाहा था तुमको हमने भी टूटकर
अनजानी राह चुन ली तुमको जानकर
आज खुद को समेटा है मनके की तरह
तुम्हारे इरादे जान सम्हाला है बिखरकर
हमने कब सोचा था नजरों से उतरोगे
आखिर कब तक झूठ का सहारा लोगे
वो वक्त गुजर गया जब दिल में तुम थे
आह दिल से निकली है तो कैसे बचोगे
दर्द के दरिया में डूबकर कैसे निकलोगे
हमारी ही तरह तुम भी जो तड़पोगे
अहसास है हमें माफ़ कर दिया तुम्हें
यादों के पन्नों से तुमको अब मिटाएंगे
राह तुम तक न जाए वो ही चल पड़ेंगे
जो फूलों से सजी हो राह हम न चलेंगे
पथरीले राह को हमें समतल बनाना है
वादा है खुद से किनारा हम न करेंगे
स्वरचित एवं मौलिक रचना
अनुराधा प्रियदर्शिनी
प्रयागराज उत्तर प्रदेश
Renu
27-Jan-2023 03:03 PM
👍👍🌺
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Punam verma
26-Jan-2023 08:25 AM
Very nice
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Swati chourasia
26-Jan-2023 06:46 AM
बहुत ही सुंदर रचना 👌
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